त्रिपुरा में सती प्रथा को कब समाप्त किया गया था?

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त्रिपुरा में सती प्रथा को कब समाप्त किया गया था?

क्या आपने कभी सोचा है कि त्रिपुरा राज्य में सती प्रथा कब समाप्त हुई थी? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका उत्तर जानना हमारे इतिहास को समझने में मदद कर सकता है। सती प्रथा एक ऐसी प्रथा थी जिसमें पतियों को अपने पतियों के साथ जलाने की प्रथा थी। यह अत्यंत विवादास्पद और अन्यायपूर्ण थी, और इसे समाप्त करने के लिए कई सालों तक लड़ाई लड़ी गई।

त्रिपुरा राज्य में सती प्रथा को समाप्त करने की पहली कोशिश 19वीं सदी में हुई थी। इस समय, त्रिपुरा राज्य के राजा धनमनिक्य ने इस प्रथा को रोकने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने एक विधान बनाया जिसमें सती प्रथा को अवैध घोषित किया गया था। इसके अलावा, उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया और उन्हें इस अन्यायपूर्ण प्रथा के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।

हालांकि, धनमनिक्य की मृत्यु के बाद सती प्रथा फिर से प्रचलित हो गई। इसके बावजूद, इसे समाप्त करने के लिए लोगों ने और लड़ाई लड़ी और अपने अधिकारों की रक्षा की। अंततः, 20वीं सदी के आदेशानुसार, त्रिपुरा राज्य सरकार ने सती प्रथा को समाप्त करने के लिए कठोर कानून बनाए। इसके बाद से, सती प्रथा को त्रिपुरा राज्य में अवैध घोषित किया गया है और इसे लोगों द्वारा प्रचलित नहीं किया जा रहा है।

यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हम अपने इतिहास को समझें और ऐसी प्रथाओं को समाप्त करें जो समाज के लिए हानिकारक हो सकती हैं। सती प्रथा एक ऐसी प्रथा थी जो महिलाओं के अधिकारों को उच्चतम प्राथमिकता नहीं देती थी। इसे समाप्त करने के लिए लोगों ने बहुत मेहनत की और लड़ाई लड़ी, जिससे त्रिपुरा राज्य में इसे समाप्त करने का ऐतिहासिक कदम उठाया गया।

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